Monday, June 27, 2016

मेरी बॉस 

मिस मोहिनी मेरी बॉस थी। उम्र रही होगी करीब २८ साल की। लम्बी करीब ५'८" और सारी गोलाईयां एकदम परफेक्ट .एक

दिन हमारे आफिस का नेटवर्क गडबडा गया। कभी ऑन होता तो कभी ऑफ। उसदिन शनिवार था। मैं दिन भर उसी में उलझा रहा पर उस गुत्थी को सुलझा नहीं पाया। आखिर थक कर मैंने मैडम को कहा कि अगले दिन यानि रविवार को सुबह नौ बजे आकर इस को ठीक करने की कोशिश करूंगा। मैंने उनसे आफिस की चाभियां ले लीं।

अगले दिन जब मैं नौ बजे ऑफिस पहुंचा तो देखा कि मोहिनी मैडम मेन गेट के सामने खडी हैं। मैंने उन्हें विश किया और पूछा "आप यहां क्या कर रही हैं"।

वो बोलीं " बस ऐसे ही। घर में बोर हो रही थी तो सोचा कि यहां आकर तुम्हारी मदद करूं"। हम दरवाजा खोलकर अन्दर गए। मैडम ने कहा कि आज इतवार होने की वजह से कोई नहीं आएगा। इसलिए सुरक्षा के खयाल से दरवाजा अन्दर से बन्द कर लो। मैंने उनके कहे अनुसार दरवाजा अन्दर से बन्द कर दिया। अब पूरे आफिस में हम दोनों अकेले थे और हमें कोई डिस्टर्ब भी नहीं कर सकता था। मुझे मोहिनी मैडम की नीयत ठीक नहीं लग रही थी। दाल में जरूर कुछ काला था। नहीं तो भला आज छुट्टी के दिन एक छोटी सी समस्या के लिए उन को दफ्तर आने की क्या जरूरत। मैडम घूम कर कम्प्यूटर लैब की तरफ चल दी और मैं भी मन्त्रमुग्ध सा उनके पीछे पीछे चल दिया। पूरे माहौल में उनके जिस्म की खुशबू थी। जब हम कॉरीडोर में थे तो मैंने उनकी पिछाडी पर गौर किया। हाय क्या फिगर था। हालांकि मैं कोई एक्सपर्ट नहीं हूं पर यह दावे के साथ कह सकता हूं कि अगर मोहिनी मैडम किसी ब्यूटी कॉन्टेस्ट में भाग ले तो अच्छे अच्छों की छुट्टी कर दें और देखने वाले अपने लन्ड संभालते रह जाएं। उनकी मस्तानी चाल को देख कर यूं लग रहा था मानो फैशन शो की रैम्प पर कैट वॉक कर रही हो। उनके चूतड पेन्डुलम की तरह दोनों तरफ झूल रहे थे। उन्होंने गहरे नीले रंग का डीप गले का चोलीनुमा ब्लाउज मैचिंग पारदर्शी साडी के साथ पहना था। उनकी पीठ तो मानो पूरी नंगी थी सिवाय एक पतली सी पट्टी के जो उनके ब्लाउज को पीछे से संभाले हुई थी। उन्होंने साडी भी काफी नीची बांधी हुई थी जहां से उनके चूतडों की घाटी शुरू होती है। बस यह समझ लो कि कल्पना के लिए बहुत कम बचा था। सारे पत्ते खुले हुए थे। अगर मुझमें जरा भी हिम्मत होती तो साली को वहीं पर पटक कर चोद देता। पर मैडम के कडक स्वभाव से मैं वाकिफ था और बिना किसी गलत हरकत के मन ही मन उनके नंगे जिस्म की कल्पना करते हुए चुप चाप उनके पीछे पाीछे चलता रहा। मैडम ने कल्पना के लिए बहुत ही कम छोडा था। साडी भी कस कर लपेटे हुई थी जिससे कि उनके मादक चूतड और उभर कर नजर आ रहे थे और दोनों चूतडों की थिरकन साफ साफ देखी जा सकती थी। मैंने गौर किया कि चलते वक्त उनके चूतड अलग अलग दिशाआें में चल रहे थे। पहले एक दूसरे से दूर होते फिर एक दूसरे के पास आते। मानो उनकी गान्ड खुल बन्द हो रही हो। जब दोनों चूतड पास आते तो उनकी साडी गान्ड की दरार में फंस जाती थी। यह सीन मुझे बहुत ही उत्तेजित कर रहा था और मन कर रहा था कि साडी के साथ साथ अपने लन्ड को भी उनकी गान्ड की दरार में डाल दूं। बडा ही गुदाज बदन थामोहिनी मैडम का।

लैब तक पहुंचते पहुंचते मेरी हालत खराब हो गई थी और मुझे लगने लगा कि अब और नहीं रूका जाएगा। लैब के दरवाजे पर पहुंच कर मैडम एकाएक रूक कर पलटी और मुझसे ऊपर की सेल्फ के केबल कनेक्शन जांचने को कहा। उनकी इस अचानक हरकत से मैं संभल नहीं पाया और अपने आप को संभालने के लिए अपने हाथ उनकी कमर पर रख दिए। मैडम ने एक दबी मुस्कराहट के साथ कहा "कोई शैतानी नहीं" और मेरे हाथ अपनी कमर से हटा दिए। मैंने झेंपतेे हुए उनसे माफी मांगी और लैब में ऊपर की सेल्फ से कम्प्यूटर हटाने लगा। मैडम भी उसी सेल्फ के पास झुककर नीचे के केबल देखने लगी। उनकी साडी का पल्लू सरक गया जिससे कि उनकी चूचियों का नजारा मेरे सामने आ गया। हाय क्या कमाल की चूचियां थीं। एक पल को तो लगा कि दो चांद उनकी चोली में से झांक रहे हों। वो ब्रा नहीं पहने थी जिससे कि चूची दर्शन में कोई रूकावट नहीं थी। और काम करना मेरे बस में नहीं था। मैं खडे खडे उस खूबसूरत नजारे को देखने लगा। चोली के ऊपर से पूरी की पूरी चूचियां नजर आ रही थीं। यहां तक कि उनके खडे गुलाबी निप्पल भी साफ मालूम दे रहे थे। शायद उन्हें मालूम था कि मैं ऊपर से फ्री शो देख रहा हूं। इसीलिए मुझे छेडने के लिए वो और आगे को झुक गई जिससे उनकी पूरी की पूरी चूचियां नजर आने लगीं। हाय क्या नजारा था। मैं खुशी खुशी चूचियों की घाटी में डूबने को तैयार था। ऐस लगता था मानो दो बडे बडे कश्मीरी सेव साथ साथ झूल रहो हों।

एकाएक मैडम ने अपना सर ऊपर उठाया और मुझे अपनी चूचियों को घूरते हुए पकड लिया। जब हमारी नजर मिली तो अपने निचले होठ को दांतों में दबा कर मुस्कराते हुए बोली "ऐ क्या देखता है"। मैं सकपका गया और कुछ भी नहीं बोल पाया। मैडम ने मेरे चूतडों पर हल्की सी चपता जमा कर कहा " शैतान कहीं के। फ्री शो देख रहा है"।

मेरा चेहरा लाल हो गया उनके मुस्कराने के अन्दाज से मैं और भी उत्तेजित हो गया और मेरा लौंडा जीन्स के अन्दर ही तन कर बाहर निकलने को बेचैन होने लगा। मैंने अपनी जीन्स को हिला कर लन्ड को ठीक करने की कोशिश की पर मुझे इसमें कामयाबी नहीं मिली। लन्ड इतना कडा हो गया था कि पूछो मत। बस ऊपर ही ऊपर होता जा रहा था और मेरी जीन्स उठती ही जा रही थी। मैडम ने मेरी परेशानी भांप ली और शरारती मुस्कराहट के साथ बोली " ये तुमने पैन्ट में क्या छुपाया है जरा देखूं तो मैं भी"। जब तक मैं कुछ बोलूं उन्होंने खडे होकर मेरे लन्ड को पकड लिया और पैन्ट के ऊपर ही से कस कर दबा दिया।

"हाय बडा तगडा लगता है तुम्हारा तो। बडा बेताब भी है। बस ऐसा ही लन्ड तो मुझे पसन्द है"। मैं तो हक्का बक्का रह गया। मैडम मोहिनी मेरे साथ फ्लर्ट कर रही हैं। चूंकि मैं टेबल के ऊपर खडा था इस लिए मेरा लन्ड उनके मुंह की ठीक सीध में था। वो अपने चेहरे को और पास लाइंर् और पैन्ट के ऊपर ही से मेरे लन्ड को चूमते हुए बोली " इसे जरा और पास से देखूं तो क्यों इतना अकड रहा है"। ऐसा कहते हुए मैडम मोहिनी ने मेरी जीन्स की जिप खोल दी। मैं आम तौर पर अन्डरवियर नहीं पहनता हूं। लिहाजा जिप खुलते ही मेरा लन्ड आजाद हो गया और उछलकर उनके चेहरे से जा टकराया।

"हूं ये तो बडा शैतान है। इसे तो सजा मिलनी चाहिए।" मैडम ने अपने सेक्सी मुंह को खोला और मेरे सुपाडे को अपने रसीले होठों में दबा लिया। मैं तो मूक दर्शक बन कर सातवें आसमान में पहुंच गया था। । मैंने मैडम का सर पकड कर अपने लौंडे पर दबाया और साथ ही साथ अपने चूतडों को आगे धक्का दिया। एक ही झटके में मेरा पूरा लन्ड मैडम के मुंह में कंठ तक घुस गया। उनका दम घुटने लगा और उन्होंने अपना सिर थोडा पीछे किया। मुझे लगा कि अब मैडम मुझे मेरे उतावलेपन के लिए डांटेगीं।

मैं बोला "सॅारी मैडम मैं अपने पर काबू नहीं रख पाया"।

उन्होंने बोलने से पहले मेरा लन्ड अपने मुंह से निकाला और मुस्कुराई "धत पगले। मैं तुम्हारी हालत का अन्दाजा लगा सकती हूं। तुम मुझेमोहिनी कह कर बुलाओ ठीक है ना। अब मुझे अपना काम करने दो"। ऐसा कह कर मैडम ने एक हाथ में मेरा लन्ड पकडा और शुरू हो गई उसका मजा लेने में। वो लन्ड को पूरा का पूरा बाहर निकाल कर फिर दोबारा अन्दर कर लेती। मैं भी धीरे धीरे कमर हिला हिला कर उनका मुंह चोदने लगा। कुछ देर बाद वो बोली "बस इसी तरह खडे खडे कमर हिलाने में क्या मजा आएगा। थोडा आगे बढो"़।

मैंने उनका इशारा भांप लिया और पहले उनके गालों को सहलाया। फिर धीरे धीरे हाथो को नीचे खिसकाते हुए उनकी गर्दन तक पहुंचा और उनकी चोली का स्ट्रैप खोल दिया। दोनों मस्त चूचियां उछल कर बाहर आ गई। मैडम ने भी मेरी जीन्स खोल दी और बिना लन्ड मुंह से बाहर किए नीचे उतार दी। फिर लन्ड चूसते हुए वो अपनी चूचियों को मेरी जांघों पर रगडने लगी। मैंने थोडा झुक कर उनकी चूचियों को पकडा और कस कस कर मसलने लगा। जल्द ही हम दोनों काफी उत्तेजित हो गए और हमारी सांसें तेज हो गई। मैं बोला "मैडम मैं पूरी तरह से आपको मजा नहीं दे पा रहा हूं। अगर इजाजत हो तो मैं भी नीचे आ जाऊं।"

मैडम ने मुझे गुस्से से देखा और हौले से सुपाडे को काट लिया। वो बोली "तुम मेरी बात नहीं मान रहे हो। अगर मैं बोलती हूं कि मुझे मोहिनी कह कर पुकारो तो तुम मुझे मोहिनी ही कहोगे मैडम नहीं।"

मैं बोला "सॉरी मोहिनी अब तो मुझे नीचे आने दो।" मोहिनी ने मेरा हाथ पकड कर नीचे उतरने में मदद की। नीचे आते ही मैंने उनके चूतडों को पकडा और अपने पास खींच कर होठों को चूमने लगा। अब मैं उनके होठों को चूसते हुए एक हाथ से चूतड सहला रहा था जबकि मेरा दूसरा हाथ उनकी चूचियों से खेल रहा था।मोहिनी मेरे लन्ड को हाथ में पकड कर सॉफ्ट टॉय की तरह मरोड रही थी। मैंने मोहिनी की साडी पकड कर खींच दी और पेटीकोट का भी नाडा खोल कर उतार दिया। मोहिनी ने भी मेरी टी शर्ट उतार दी और हम दोनों ही पूरी तरह नंगे हो गए। एक दूसरे को पागलों की तरह चूमते हुए हम वहीं जमीन पर लेट गए। चूत की खुशबू पा कर मेरा लन्ड फनफनाने लगा।मोहिनी भी गर्म हो गई थाी और अपनी चूत मेरे लन्ड पर रगड रही थी। हम दोनों एक दूसरे को कस कर जकडे हुए किस करते हुए कमरे के कालीन पर लोट पोट हो रहे थे। कभी मैं मोहिनी के ऊपर हो जाता तो कभीमोहिनी मेरे ऊपर। काफी देर तक यूं मजे लेने के बाद हम दोनो बैठ कर अपनी फूली हुई सांसों को काबू में करने की कोशिश करने लगे।

मोहिनी ने अपने बाल खोल दिए। मैं बालों को हटा कर उनकी गर्दन को चूमने लगा। फिर दोबारा उनके प्यारे प्यारे होठों को चूमते हुए उनकी चूचियों से खेलने लगा। मोहिनी मेरा सिर पकड कर अपनी रसीली चूचियों पर ले गई और अपने हाथ से पकड कर एक चूची मेरे मुंह में डाल दी। मैं प्यार से उनकी चूचियों को बारी बारी से चूमने लगा। वो काफी गरम हो गई थी और मुझे अपने ऊपर ६९ की पोजिशन में कर लिया। मैं उनकी रसीली चूत का अमृत पीने लगा।मोहिनी अपनी जीभ लपलपा कर मेरे लौंडे को चूसे जा रही थी। जब भी हम में से कोई भी झडने वाला होता तो दूसरा रूक कर उसको संभलने का मौका देता। कई बार हम दोनों ही किनारे तक पहुंच कर वापस आ गए। हमारी वासना का ज्वार बढता ही जा रहा था और बस अब एक दूसरे में समा जाने की ही बेकरारी थी।

मोहिनी ने मुझे अपने ऊपर से उठाया और खुद चित्त हो कर लेट गई। अपने दोनों पैर उठा कर अपने हाथों से पकड लिए और मुझे मोर्चे पर आने को कहा।मैंने भी मोहिनी के दोनों पैरों को अपने कन्धों पर टिकाया और लन्ड को उसकी चूत के मुंह पर रख कर धक्का लगाया। मेरा लोहे जैसा सख्त लौंडा एक ही झटके में आधा धंस गया। मोहिनी के मुंह से उफ की आवाज निकली पर अपने होठों को भींच कर नीचे से जवाबी धक्का दिया और मेरा लन्ड जड तक उसकी चूत में समा गया। फिर मेरी कमर पर हाथ रख कर मुझे थोडा रूकने का इशारा किया और बोली "तुम्हारा लन्ड तो बडा ही जानदार है। एक झटके में मेरी जान निकाल दी। अब थोडी देर धीरे धीरे अन्दर बाहर कर के मजा लो।"

मोहिनी के कहे मुताबिक मैं धीरे धीरे उसकी चूत में लन्ड अन्दर बाहर करने लगा। चूत काफी गीली हो चुकी थी इसलिए मेरे लन्ड को ज्यादा दिक्कत नहीं हो रही थी। मैं धीरे धीरे चूत चोदते हुए मोहिनी की मस्त चूचियों को भी मसल रहा था। बडी ही गजब की चूचियां थी उसकी। एक हाथ में नहीं समा सकती थी। । वो चित्त लेटी हुई थी पर चूचियों में जरा भी ढलकाव नहीं था और हिमालय की चोटियों की तरह तन कर ऊपर को खडी थी। उत्तेजना की वजह से उसके डेढ इन्च के निप्पल भी तने हुए थे और मुझे चूसने का आमन्त्रण दे रहे थे। मै दोनों निप्पलों को चुटकी में भर कर कस कस कर मसल रहा था। मोहिनी भी सिसकारी भर भर कर मुझे बढावा दे रही थी। आखिर मुझसे नहीं रहा गया और उसके पैरों को कन्धे से उतार कर जमीन पर सीधा किया और उसके ऊपर पूरा लम्बा होकर लेट गया। मोहिनी ने दोनों हाथों से अपनी चूचियों को पकड कर पास पास कर लिया और मैं दोनों निप्पलों को एक साथ चूसने लगा। ऐसा लग रहा था कि सारी दुनिया का अमृत उन चूचियों में ही भरा हो। मैं दोनों हाथों से चूचियों को मसल रहा था।

चूचियों की मसलाई और चुसाई में मैं अपनी कमर हिलाना ही भूल गया। तब मोहिनी अपने हाथ नीचे करके मेरे चूतडों पर ले गई और उन्हें फैला कर एक उंगली मेरी गान्ड में पेल दी। मैं चिहुंक गया एक जोरदार धक्कामोहिनी की चूत में लगा दिया। मोहिनीखिलखिला कर हंस पडी और बोली "क्यों राज्जा मजा आया। अब चलो वापस अपनी डियूटी पर।"

मोहिनी का इशारा समझ कर मैं वापस कमर हिला हिला कर उसकी चूत चोदने लगा। मोहिनी भी नीचे से कमर उठाने लगी और धीरे धीरे हम दोनों पूरे जोश के साथ चुदाई करने लगे। मैं पूरा लन्ड बाहर खींच कर तेजी से उसकी चूत में पेल देता। मोहिनी भी मेरे हर शॉट का जवाब साथ साथ देती। पूरे कमरे में फच फच की आवाज गूंज रही थी। जैसे जैसे जोश बढता गया हमारी रफ्तार भी तेज होती गई। आखिर उसकी चूचियों को छोड मैंने उसकी कमर को पकड कर तूफानी रफ्तार से चुदाई शुरू कर दी। मोहिनी भी कहां पीछे रहने वाली थी। वो भी मेरी गर्दन में हाथ डाल कर पूरे जोश से कमर उछाल रही थी। अब ऐसा लगने लगा था कि हम दोनों ही अपनी अपनी मंजिल पर पहुंच जाएंगे पर मोहिनी तो एक्सपर्ट चुदक्कड थी और अभी झडने के मूड में नहीं थी। उसनेे अपनी कमर को मेरी कमर की दिशा में ही हिलाना शुरू दिया। इससे लन्ड अन्दर बाहर होने के बजाए चूत के अन्दर ही रह गया। मेरी पीठ पर थपकी दे कर उन्होंने रफ्तार कम करने को कहा और बोली "थोडा सांस ले ले फिर शुरू होना। इतनी जल्दी झडने से मजा पूरा नहीं आएगा।"

मैंने किसी तरह अपने को संभाल कर रफ्तार कम की। मैं अब उसके रसीले होठों को चूसते हुए हौले हौले चोदने लगा। जब हम दोनों की हालत संभली तो दोबारा मोहिनी ने फुल स्पीड चुदाई का इशारा किया और फिर से मैं पहले की तरह चोदने लगा। रूक रूक कर चुदाई करने में मुझे भी मजा आ रहा था। हमारी इस चुदाई का दौर आधा घन्टे से भी ज्यादा चला। कई बार मेरे लन्ड में और उसकी चूत में उफान आने को हुआ और हर बार हमने रफ्तार कम करके उसे रोक लिया। हाालांकि कमरे में ए सी चल रहा था पर हम दोनो पसीने से नहा गए। आखिर मोहिनी ने मुझे झडने की इजाजत दी। मैं तूफान मेल की तरह उसकी चूत में धक्के लगाने लगा। वो भी कमर उछाल उछाल कर मेरी हर चोट का जवाब देने लगी। चरम सीमा पर पहुंच कर मैं जोर से चिल्लाया "मोहिनी मेरी जान। मैं आया" और उसकी चूत में जड तक लन्ड घुसा कर अपना सारा उफान उसके अन्दर डाल दिया। मोहिनी ने भी मेरी पीठ पर अपने पैर बांध कर मुझे कस कर चिपका लिया और चीखती हुई झड गई।

सरदी की रात आंटी के साथ

हैलो, दोस्तो ये मेरी पहली कहानी है जो मैं आप को बताने जा रहा हूं। मेरा नाम राजा है। मैं जब स्कूल में था तो काफ़ी शर्मीला हुआ करता था लेकिन जब मैं कोलेज पहुंचा तो वहां पर जो दोस्त मिले उनके साथ मैन एक चालू औरत के साथ उसके घर पर उसके पियक्कड पति के सामने चुदाई की और तब से यह सिलसिला आज तक चल रहा है। वैसे तो मैने अपनी ज़िंदगी में कई लड़कियों, कई आंटियों और भाभियों को चोदा है लेकिन आज जो घटना मैं आप लोगों को बताने जा रहा हूं वो मेरी ज़िंदगी में बिल्कुल अचानक घटी थी जब मैने अपनी आंटी को ही चोद डाला।

पहले तो मैं आप लोगों को अपनी आंटी के बारे में बता दूं। वो 30 साल की, गोरा रंग, टाइट बोडी, बड़ी बड़ी चूचियां, ऐसा की जो भी देखे देखता ही रह जाये। वो दिल्ली में रहती है। उसके 2 बच्चे हैं। One is 10 years old and other is 7 years old। पिछले दिसम्बर में उनके घर गया था ओफ़िस के काम से, मैं मुम्बई में जोब करता हूं। और मेरा काम ऐसा है कि पूरा हिंदुस्तान घूमना पड़ता है।

दिल्ली में दिसम्बर के महीने में काफ़ी ठंड होती है। अंकल नाइट शिफ़्ट की ड्युटी करने गये था। घर छोटा होने के कारण हम एक ही रूम में सोये था। मैं बेड पर सोया था और आंटी बच्चों के साथ नीचे लेटी थी। ठंड काफ़ी थी इसलिये बेड पर सोते ही मुझे नींद आ गयी। रात के 2 बजे पेशाब करने के लिये अचानक मेरी नींद खुली तो मैने देखा आंटी एक पतली सी चादर ओढ़ी हुई है और बुरी तरह से कांप रही थी और बच्चे एक कम्बल में सो रहे थे। शायद घर में दो ही कम्बल थे, एक उन्होने मुझे दिया था और दूसरा बच्चों को उढ़ाया था। मैं ने लाइट जलाई तो आंटी उठ कर बैठ गयी लेकिन वो बुरी तरह से कांप रही थी। मैं ने कहा आप ऊपर बेड में चली जायें मैं नीचे सो जाता हूं, तो उन्होने कहा ठंड बहुत है तुम्हें ठंड लग जायेगी। मैने कहा आप तो बुरी तरह से कांप रही है ठीक से बोल भी नहीं पा रही हैं आप ऊपर बेड पे सो जाओ।

और इतना कह कर मैं ने उनका हाथ पकड़ कर ऊपर बेड पे बैठा कर पेशाब करने चला गया। वापस आ कर देखा तब भी वो कम्बल के अन्दर बुरी तरह से कांप रही थी। तभी उन्होने कांपते हुए कहा राजा लाइट बंद करके तुम भी बेड पर सो जाओ।

मैने लाइट बंद की और उनके पास आ कर सो गया। बेड छोटा होने के कारण हम एक दूसरे से बिल्कुल सटे हुए थे। तभी उनका हाथ मैने छुआ तो वो काफ़ी ठंडा था और वो अब भी कांप रही थी ठंड से।

फिर आंटी ने मुझ से कहा राजा मुझे ज़ोर से पकड़ो मुझे बहुत ठंड लग रही है। मैं ने उनको कहा कि आप घूम कर सो जाओ और उनके सर को मैने अपने एक हाथ के नीचे रखा और दूसरा उनके पेट पर रखा।अब हम दोनो की पोजिशन कुछ इस तरह थी कि उनकी गांड मेरे लंड पे पूरी तरह से चिपकी हुई थी और मैं पूरी तरह से उसे दोनो हाथों से पकड़े हुआ था। मेरा लंड आंटी की गांड की दरार के बीच में घुस कर टाइट होने लगा था। मैं अपनी कमर को पीछे ले जाने लगा और अपनी पकड़ को भी ढीला करने लगा। लेकिन आंटी बहुत बुरी तरह से कांप रही थी और मेरे हाथ को अपने हाथ से ज़ोर से पकड़े हुई थी। मैं आंटी के साथ कुछ गलत सोच भी नहीं सकता था लेकिन मेरा लंड मेरी बस में नहीं था। मेरा लंड अब बेकाबू हो रहा था और वो पूरी तरह से आंटी की चूत में घुसने को तैयार था।

तभी आंटी ने मेरे हाथ को अपनी कमीज़ के नीचे घुसा कर अपने पेट पर रख दिया उनका पेट बर्फ़ की तरह ठंडा हो रहा था। मेरा गर्म हाथ रखने से उनको काफ़ी अच्छा लग रहा था आंटी मेरे हाथ को पकड़ कर अपने पेट पेर और ज़ोर से रगड़ने लगी। मैं धीरे धीरे उसके पेट को सहलाने लगा। सहलाने के कारण कई बार मेरा हाथ उनकी चूचियों से टकराया लेकिन उन्होने कुछ नहीं कहा। मैने हिम्मत करके उसके एक दूध को पकड़ कर सहलाने लगा। उसकी दूध का निप्पल बिल्कुल टाइट हो कर बाहर निकल गया था। मैं उनके निप्पल को उंगलियों के बीच रख कर धीरे धीरे घुमाने लगा। अब उसके मुंह से सिसकियां निकलनी शुरू हो गयी थी।

फिर मैने उनकी कमीज़ पीछे से पूरी उठा कर उसके गर्दन तक कर दिया और उसकी ब्रा के हुक भी खोल दिये फिर मैने भी अपना बनियान उतार कर अपने पेट और सीने को उसकी नंगी पीठ पर सटा कर पुरी तरह से चिपक गया।

उसे मेरे जिस्म की गरमी अच्छी लग रही थी वो भी मुझसे पूरी तरह से चिपक गयी थी। अब मेरे लंड को और रोक पाना मेरे लिये मुश्किल हो रहा था। मैं उसके पायजामे को धीरे धीरे नीचे करने लगा तो वो थोड़ी थोड़ी कमर उठाने लगी। मैं समझ गया कि आंटी को अब लंड की गरमी की ज़रूरत है वो अब पूरी तरह से तैयार थी।

मैने अब उसे पायजामे को पूरा उतार दिया और अपनी लुंगी को भी उतार दिया। फिर मैने अपने लंड को उसकी चूत पे रख कर धीरे से एक धक्का मारा और लंड पूरा का पूरा चूत में घुस गया। मैं अब उसकी चूचियों को अपने हातों से ज़ोर ज़ोर से दबा रहा था। थोड़ी देर के बाद वो मेरी तरफ़ घूम गयी। मैं अब उसके दोनो पैरों को खोल कर बीच में बैठ गया और उसकी चूचियों को मुंह से चूसने लगा। तभी उसने मेरे लंड को पकड़ कर अपनी चूत की तरफ़ खीचने लगी। मैं समझ गया कि उसकी चूत चुदवाने के लिये बेताब हो रही है।

मैने अपने लंड को उसकी चूत के छेद पर रख कर एक जोर का झटका मारा और पूरा का पूरा लंड उसकी बुर में घुस गया। वो पूरी मस्ती में आ चुकी थी। उसके मुंह से ऊह आह की आवाज़ निकल रही थी। मैं पूरी स्पीड में अपने लंड को पूरा बाहर कर के अंदर डाल रहा था। लंड और बुर के टकराने से थप थप की आवाज़ आ रही थी। आंटी भी अपनी कमर को उठा उठा कर पूरा साथ दे रही थी। फिर अचानक वो मेरे कमर को पकड़ का ज़ोर ज़ोर से खीचने लगी मैं भी ज़ोर ज़ोर से उसे चोदने लगा और फिर अचानक मेरे लंड ने 8-10 झटके में पिचकारी की तरह पूरी गरमी आंटी के बुर में भर दिया। आंटी भी पूरी ताकत से मेरे सीने से चिपक गयी। हम दोनो आधे घंटे तक वैसे ही पड़े रहे। आधे घंटे के बाद मेरे लंड में फिर से जोश आने लगा। मैने आंटी को उल्टा लिटा दिया और पीछे से उसके बुर को चोदने लगा। पीछे से चोदने में मुझे ऐसा लग रहा था जैसे मैं किसी कुंवारी लड़की की चुदाई कर रहा था। उसकी गोल गोल गांड मेरे लंड के दोनो तरफ़ इस तरह से फ़िट हो रही थी मानो मेरे लिये ही वो गांड बनी हो। मैं फ़ुल स्पीड में उसकी चुदाई करने लगा और इस बार भी लंड ने सब गरमी बाहर निकाली तो उसकी बुर मेरे वीर्य से भर गयी। अब वो पूरी तरह से नोर्मल हो चुकी थी।

फिर हम सो गये। सुबह वो मुझे जगाई तो मैं उनसे नज़र नहीं मिला पा रहा था। लेकिन वो मुझे देख कर मुस्कुरा रही थी। बच्चे भी स्कूल जा चुके थे। तभी अचानक दरवाजे पर किसी ने खटखटाया। मैं समझा अंकल आ गये। दरवाज़ा खुला तो एक खूबसूरत लड़की, बिल्कुल टाइट जीन्स और टी-शर्ट में अन्दर आयी और आंटी से कहा की अंकल ने फोन किया था अभी और कहा है कि वो ओवरटाइम पर हैं। मैं खुश हो गया। फिर वो लड़की चली गयी। मैने आंटी से पूछा कि ये लड़की कौन है तो उन्होने कहा कि मकान मालिक की बेटी है। मैं आंटी को मुस्कुराते हुए देखा और कहा आंटी मुझे इसे चोदना है। तुम कुछ करो न प्लीज़। आंटी बोली नहीं नहीं मैं कुछ नहीं कर सकती। इतना सुनते ही मैने आंटी को बेड पर पटक दिया और उसकी चूचियों को ब्रा से निकाल कर चूसने लगा और कहा बोलो अब उसे मुझसे चुदवाने के लिये तैयार करोगी या नहीं। आंटी हंसते हुए बोली, अच्छा बाबा मैं उसे तुम्हारे लिये तैयार करती हूं। मैने कहा ये हुई न बात और फिर आंटी के सारे कपड़े उतार कर फिर से उसकी चुदाई करने के लिये उसे गरम करने लगा। दिन के उजाले मैं उसकी खूबसूरती बिल्कुल साफ़ साफ़ दिख रही थी। उसकी नंगे जिस्म को देकते ही मेरा लंड लुंगी से बाहर आने को बेताब होने लगा। मैने अपनी लुंगी निकाली और आंटी की ऐसी चुदाई की कि वो मेरी दिवानी बन गयी।

Saturday, June 25, 2016

मराठी प्रणय कथा

मी दहावीत शिकत असतानाची ही गोष्ट. आमच्या गल्लीमध्ये माझ्या घराच्या पुढे चार घरे सोडून शोभाताई रहायची. तिचे शिक्षण पूर्ण झाले होते. व ती घरीच असायची. तिची आई कामाला जायची. व तिचे बाबा कामानिमित्त बाहेरगावी असायचे. तिचा भाऊ इंजिनीअरिंग करीत होता व तो होस्टेलवर रहायचा. दिवसभर शोभाताई घरी एकटीच असायची. तिचे व माझ्या आईचे खुप जमायचे. ती सतत आमच्या घरी यायची. माझ्या आईला ती कामात मदत करायची. आईला ती काकू म्हणायची. माझा लहान भाऊ खुप वात्रट होता. म्हणून आईने तिला त्यांच्या घरी माझा अभ्यास घेण्याची विनंती केली. ती पण हो म्हणाली.
मग मी रोज तिच्याकडे जाऊ लागलो. ती खुपच छान अभ्यास घ्यायची. ती शिकवताना कधी रागवायची नाही. खुप समजुन सांगायची. मला लगेच समजायचे. मग मी दहावीची परीक्षा दिली.सर्व पेपर खुपच छान गेले. मी रोज शोभाताईकड़े जायचो. संध्याकाळी मात्र मी मित्रांकडे जायचो. आम्ही सर्व जमलो की पोरींची टवाळी करू लागलो होतो. पोरिंविशयी मला खुप आकर्षण वाटु लागले होते. पण साला एक पोरगी पटेल तर शप्पत. एखाद्या मुलीचे मोठे गोळे बघितले की आमचा बाबुराव खाडकन जागा व्हायचा. मग मात्र त्याला शांत करता करता नाकि नऊ यायचे.

शोभाताई दिसायला खुप सुन्दर होती. ती साधारणपणे २० वर्षाची असावी. गोरी गोरीपाण सुन्दर नयन, नाक थोड़े छोटेसे होते पण तिचे ओठ नाजुक व गुलाबी होते. ती उंच होती पण थोडीशी जाड होती.केस काळेभोर व तिच्या नितंबाना स्पर्श करीत होते. वक्ष मोठे व उभारदार होते.ती घरात नेहमी परकर व पोलका घालायची. तिचे नितम्ब खुपच सुन्दर व कड़क होते. तिची त्वचा खुपच मुलायम होती. ती खुपच मादक व खळखळउन हसायची. तिचे बोलने खुपच गोंड होते. मला ती खुप आवडायची.मात्र माझ्या मनात कधीही तिच्या बद्दल वाईट विचार आले नव्हते.

एक दिवस मी असाच कोपऱ्यावर उभा राहून टवाळकी करीत होतो आणि तेवढ्यात शोभाताई तिथे दुकानात काहीतरी घेण्यासाठी आली होती. माझे अचानक तिच्याकडे लक्ष गेले. मी खुप घाबरलो. पुरता भेदरून गेलो होतो मी. मला काहीच सुचेना. म्हटले, बोम्बला, आपली काही खैर नाही आता. मी शोभाताई जवळ गेलो ती नाक फेंदारून रागाने माझ्याकडे पाहत निघून गेली. मी मग थोडासा धीर एकवटून तिच्या मागे गेलो. ती माझ्याच घरात घुसली.गोट्या कपाळात जाने म्हणजे काय ते मला आत्ता समजले. तसाच मनाचा हिय्या करून घरात घुसलो. तिने माझ्या आई जवळ सामान व पैसे दिले आणि ती जाऊ लागली. मी तिला घराबाहेर जाऊ दिले मग तिच्या मागे गेलो आणि तिच्याशी बोलण्याकरीता तिला थांबवू लागलो, पण ती मला भिक घालायला तयार नव्हती. मी हिरमुसला होउन तिथून निघालो. माझे कशातच लक्ष लागत नव्हते. संध्याकाळी मी परत मित्रांकडे गेलो. पण तिथेही माझे मन रमेना. रम्याने मला विचारले, काय झालय रे तुला. मी त्याला सर्व परिस्थिति सांगितली. तर तो म्हणाला, अरे सोड रे, ती तरी कुठे साजुक आहे. ती नाही का सुरेशदादाला चढवून घेत. काय? मी जवळ जवळ किंचाळलोच. तो म्हणाला खरेच बोलतोय मी , हवे तर संजाला विचार. संजाने पण मान डोलावली. मला खुप राग आला होता. मी तिथून तड़क घरी आलो. शोभाताईबद्दल कुणी असे काही बोलले तर मला ते आवडत नव्हते. शोभाताई रोज आमच्या घरी यायची पण माझ्याशी ती बोलत नव्हती.

मग तो दिवस उजाडला. त्या दिवशी माझा रिझल्ट होता. माझे बाबा घरी नव्हते म्हणून मी व माझी आई शाळेत गेलो. मला ८९% पडले होते. आई खुप खुश झाली. मग आम्ही येताना वाटेत थांबुन पेढे घेतले आणि घराकडे निघालो. रस्त्यात माझा एक मित्र भेटला. मी आईला सांगुन त्याच्याजवळ थांबलो. आईने लवकर घरी येण्यासाठी बजावले. मी हो म्हणालो. थोडा वेळ त्याच्याबरोबर टाइमपास केला आणि घरी आलो. घरी आल्यावर आईने तोंडहातपाय धुवून देवा जवळ पेढा ठेवायला सांगितला. देवाजवळ पेढा ठेवल्यावर आईने एक पेढा मला भरविला व स्वत एक पेढा खाल्ला अन मला म्हणाली जा पहिला जावून शोभाताईला पेढे देऊन ये. मी गप्प झालो व तिथेच घुटमळत राहिलो. आई म्हणाली, अरे जा ना. मी म्हणालो, आई ती माझ्यावर चिडली आहे. ती माझ्याशी बोलत नाही. तर आई पटकन म्हणाली, अरे जा काही नाही होत. तूच काहीतरी वात्रटपना केला असशील. ती मोठी आहे ना तुझ्यापेक्षा. तिनेच तुझा अभ्यास घेतलाना. जा तिला पेढा पण दे आणि तिची माफ़ी पण माग. मला माहित आहे तिचा स्वभाव. ती कधी कुणावर चिडत नाही. आईने असे म्हनल्यावर मला खुप बरे वाटले. मी तड़क तिच्या घरी गेलो. दरवाजा बंद होता, म्हणून मी थोडासा लोटला तर तो उघडला मी मनाचा हिय्या करून आत गेलो. शोभाताई पलंगावर ओणवी होउन कसले तरी पुस्तक वाचत होती. मी हळूच तिला हाक मारली व म्हणालो शोभाताई, मला ८९% पडले. तिने पटकन ते पुस्तक उशीखाली ठेवले आणि माझ्याकडे पाहत उठली आणि मला मीठी मारली. व म्हणाली, ग्रेट मला माहित होते की तुला खुप चांगले मार्क्स मिळणार. असे म्हणून तिने माझी पप्पी घेतली व म्हणाली आधी पेढे दे. मी पुडा तिच्यासमोर धरला. तिने त्यातून एक पेढा काढून मला भरविला. पेढा खाताना मी तिला म्हणालो अग तू पण खा ना. तर ती म्हणाली मी तुला पेढा भरविला आता तू मला भरव. मी तिला पेढा भरवला.पेढा खातखात ती म्हणाली बंटी मला आज खुप आनंद झालाय, तू अगदी माझ्या अपेक्षेप्रमाने मार्क्स मिळविलेस. सांग तुला काय गिफ्ट हवय. मी म्हणालो काही पण तुला आवडेल ते दे. तिचा मूड बघून मी पटकन तिला म्हणालो, शोभाताई सॉरी, मी त्या दिवशी चुकलो, मी परत नाही असे करणार. तिने परत मला जवळ ओढले आणि माझ्या गालाची पप्पी घेत म्हणाली, मला माहित आहे तू असा नाहीस पण कुठल्याही मित्रांच्या नादाने तू काही चुकीचे करावे असे मला नाही वाटत. तिचे उरोज माझ्या हनुवटी आणि ग़ळ्याला स्पर्श करीत होते. तिचा तो उबदार स्पर्श मला मोहुन टाकित होता. मी ही तिला बिलगलो. बंटी, अरे असे छेडून मुली पटत नसतात. मी म्हणालो, माझा तस हेतु नव्हता. ती हसून म्हणाली अरे तुझ्या वयात मुलींबद्दल आकर्षण निर्माण होने हे काही नवीन नाही. मुली पटवन्याचे अनेक मार्ग आहेत. मी तुला शिकवल मुलींना कसे पटवायचे ते. आणि मला विचारले तुला कशा मुली आवडतात? मी म्हणालो की स्वभावाने छान आणि दिसायला सुन्दर. तिने थोडा विचार केला आणि म्हणाली सुन्दर म्हणजे कुनासारखी? मी म्हणालो तुझ्यासारखी खुप सुन्दर नसेल तरी चालेल. तिने परत मला मीठी मारली अणि विचारले मी एवढी सुन्दर आहे का? मी म्हणालो हो प्रश्नच नाही. ती म्हणाली तू माझ्यात काय पाहिले की मी तुला सुन्दर दिसते. मी म्हणालो तुझा गोरा रंग.ती म्हणाली बस गोऱ्या रंगामुळे मी तुला सुन्दर दिसते. मी म्हणालो नाही ग तुझे लांबसड़क काळेभोर रेशमासारखे केस, तुझे टपोरे डोळे, तुझे लाल लाल कान, तुझे गुलाबाच्या पाकळयासारखे ओठ. ती लड़ीवाळपणे मला म्हणाली सांग ना आणखी काय आवडते? तुझा गोंड गळा. ती म्हणाली पुढे बोल ना. आता माझा बाबुराव उठू लागला होता. मी तुझ्या छातीवरचे ते दोन मोठे गोळे म्हणता म्हणता माझे शब्द गिळून म्हणालो शोभाताई तू खुप सुन्दर आहेस. तिने परत माझ्या गालाची पप्पी घेतली. मी घाबरत तिला विचारले शोभाताई मी पण तुझी पप्पी घेऊ का? काही न म्हणता तिने डोळे मिटून घेतले. मग मी धीर एकवटून तिच्या गालाच्या जवळ माझे ओठ नेताना पाहिले तिचे ओठ थरथरत होते. तिच्या सर्वांगावर शहारे आले होते. ते पाहून मी तिच्या ओठांवर माझे ओठ ठेवले. ती काहीच म्हणाली नाही. आता मात्र माझा बांध तुटू लागला. मग मी पहिल्यांदा तिला खुप आवळले आणि तिच्यावर माझ्या मुक्यांचा वर्षाव करू लागलो. ती पण मला प्रतिसाद देत होती. माझे हाथ तिच्या मानेवर गेले होते. मग मी तिच्या तोंडात तोंड घालून तिचा मुका घेत होतो. आम्हाला दोघानाही सर्व जगाचा विसर पडला होता. तिचे मुलायम हाथ एव्हाना माझ्या शर्टमध्ये घुसले होते. ती हळूवारपणे तिचा मुलायम हात माझ्या छातीवर फिरवित होती. मग मी पण मुका घेत घेत माझा एक हात हळूच तिच्या छातीवर आणला आणि तिच्या एका उरोजाला दाबले. ती हळूच सित्कारली. मी तिच्या पोलक्यावरुनच तिचे गोळे कुस्करत होतो. ती खुप गरम झाली होती. तिने माझ्या शर्टची बटने काढ़ायला सुरवात केली.तिचे कान लालबुंद झाले होते. मी हळूच तिच्या कानाचा चावा घेतला. तशी ती पुन्हा सित्कारली. तिने माझा शर्ट काढला. माझ्या प्यांटीतुन माझ्या लवडयाचा उभार स्पष्ट दिसत होता. ती वरुनच माझ्या लवडयाला कूरवाळू लागली. कुरवाळत असताना तिने मला हलकेच ढकलत पलंगाकडे सरकावले. मी पलंगावर पडलो आणि ती माझ्या अंगावर पडली. मी परत तिचा मुका घेतला व तिच्या पोलक्याची बटने काढू लागलो. तिची सर्व बटने मी पटापट काढली व तिचा पोलका बाजूला केला. तिने सफ़ेद ब्रा परिधान केली होती. तिचे ते सुन्दर गोरेपान शरीर बघून मी वेडा झालो. मी तिचे दोन्ही स्तन तसेच कूरवाळू लागलो. मग मी तिला माझ्या जवळ ओढले व तिची ब्रा काढू लागलो पण मला काही जमेना. मग मी तिला ब्रा काढायला सांगितली. ती उठली आणि माझ्याकडे पाहून हसली. मला कळेना ती का हसली, पण लगेच मला उमगले की तिच्या ब्रा चे हुक पुढेच होते. तिने हुक काढताच तिची दोन्ही कबूतरे मोकळी झाली. केवढे मोठे स्तन होते तिचे. त्याच्या अग्रभागी गुलाबी रंगाची तिची कड़क बोंडे त्या गोऱ्या स्तनांचा आकर्षकपणा वाढवित होती. तिच्या स्तनांवर हिरव्या रंगाच्या नसा फुगून स्तनान्मध्ये ताठरपना आला होता. मग मी हळूच तिचा एक स्तन तोंडात घेतला आणि त्याला चोखू लागलो. तशी शोभाताई खुपच वेडीपीशी झाली. मग तिने माझी चेन काढून आत हात घातला. माझा लवडा ती दाबू लागली. माझ्या मस्तकातुन एक जोराची कळ निघाली. आज पहिल्यांदाच कोणीतरी माझ्या लवड्याला हात लावला होता. मला खुप बरे वाटत होते. तिने माझ्या प्यांट चे बटन काढले व माजी प्यांट ती हळूहळू काढू लागली. माझी जींस असल्याने ती खाली सरकवताना माझी अंडरविअरपण थोड़ी खाली सरकली आणि माझा लंड त्यातून थोडा बाहेर आला. शोभाताई ने हे पाहताच माझ्या अंडरविअरमध्ये हात घालून खाली सरकवली व माझा ताठलेला लवडा हातात घेउन त्याच्याशी खेळू लागली. मला असे वाटु लागले की आता माझ्या लवडयातुन काहीतरी बाहेर पडणार मी तिला लगेच थाम्बवले. तिने विचारले काय झाले. मी म्हणालो मला असे वाटतय कि आता माझा चिक बाहेर पडतोय. ती म्हणाली," मग तू आता कर ना." मी म्हणालो," ठीक आहे." मग ती पलंगावर आडवी झाली. मी तिच्या परकराची नाडी खेचली. मी तिचा परकर खाली ओढू लागलो. परकर खाली खेचताना मला तिची बेम्बी दिसली. तिची बेम्बी खुपच सुन्दर होती असे वाटत होते की त्याची पप्पी घ्यावी पण आता मी कंट्रोल करू शकत नव्हतो. तिचा परकर खाली खेचताच तिच्या गोऱ्या गोऱ्या मांड्या वरची तिची निळ्या रंगाची फुलांची चड्डी दिसू लागली. तिचे शरीर म्हणजे संगमरवरच वाटत होते. आता माझ्या सहनशक्तीचा अंत झाला होता. मी पटकन तिची चड्डी खाली ओढली आणि मला तिची पुच्ची दिसू लागली. काय सुन्दर भूरी पुच्ची होती. तिची काळीभोर आणि मुलायम झाटे बघून मला कधी एकदा माझा लंड तिच्या पुच्चित घालतो असे झाले होते.

The End

Wednesday, June 22, 2016

मराठी प्रणय कथा


मी दहावीत शिकत असतानाची ही गोष्ट. आमच्या गल्लीमध्ये माझ्या घराच्या पुढे चार घरे सोडून शोभाताई रहायची. तिचे शिक्षण पूर्ण झाले होते. व ती घरीच असायची. तिची आई कामाला जायची. व तिचे बाबा कामानिमित्त बाहेरगावी असायचे. तिचा भाऊ इंजिनीअरिंग करीत होता व तो होस्टेलवर रहायचा. दिवसभर शोभाताई घरी एकटीच असायची. तिचे व माझ्या आईचे खुप जमायचे. ती सतत आमच्या घरी यायची. माझ्या आईला ती कामात मदत करायची. आईला ती काकू म्हणायची. माझा लहान भाऊ खुप वात्रट होता. म्हणून आईने तिला त्यांच्या घरी माझा अभ्यास घेण्याची विनंती केली. ती पण हो म्हणाली.
मग मी रोज तिच्याकडे जाऊ लागलो. ती खुपच छान अभ्यास घ्यायची. ती शिकवताना कधी रागवायची नाही. खुप समजुन सांगायची. मला लगेच समजायचे. मग मी दहावीची परीक्षा दिली.सर्व पेपर खुपच छान गेले. मी रोज शोभाताईकड़े जायचो. संध्याकाळी मात्र मी मित्रांकडे जायचो. आम्ही सर्व जमलो की पोरींची टवाळी करू लागलो होतो. पोरिंविशयी मला खुप आकर्षण वाटु लागले होते. पण साला एक पोरगी पटेल तर शप्पत. एखाद्या मुलीचे मोठे गोळे बघितले की आमचा बाबुराव खाडकन जागा व्हायचा. मग मात्र त्याला शांत करता करता नाकि नऊ यायचे.

शोभाताई दिसायला खुप सुन्दर होती. ती साधारणपणे २० वर्षाची असावी. गोरी गोरीपाण सुन्दर नयन, नाक थोड़े छोटेसे होते पण तिचे ओठ नाजुक व गुलाबी होते. ती उंच होती पण थोडीशी जाड होती.केस काळेभोर व तिच्या नितंबाना स्पर्श करीत होते. वक्ष मोठे व उभारदार होते.ती घरात नेहमी परकर व पोलका घालायची. तिचे नितम्ब खुपच सुन्दर व कड़क होते. तिची त्वचा खुपच मुलायम होती. ती खुपच मादक व खळखळउन हसायची. तिचे बोलने खुपच गोंड होते. मला ती खुप आवडायची.मात्र माझ्या मनात कधीही तिच्या बद्दल वाईट विचार आले नव्हते.

एक दिवस मी असाच कोपऱ्यावर उभा राहून टवाळकी करीत होतो आणि तेवढ्यात शोभाताई तिथे दुकानात काहीतरी घेण्यासाठी आली होती. माझे अचानक तिच्याकडे लक्ष गेले. मी खुप घाबरलो. पुरता भेदरून गेलो होतो मी. मला काहीच सुचेना. म्हटले, बोम्बला, आपली काही खैर नाही आता. मी शोभाताई जवळ गेलो ती नाक फेंदारून रागाने माझ्याकडे पाहत निघून गेली. मी मग थोडासा धीर एकवटून तिच्या मागे गेलो. ती माझ्याच घरात घुसली.गोट्या कपाळात जाने म्हणजे काय ते मला आत्ता समजले. तसाच मनाचा हिय्या करून घरात घुसलो. तिने माझ्या आई जवळ सामान व पैसे दिले आणि ती जाऊ लागली. मी तिला घराबाहेर जाऊ दिले मग तिच्या मागे गेलो आणि तिच्याशी बोलण्याकरीता तिला थांबवू लागलो, पण ती मला भिक घालायला तयार नव्हती. मी हिरमुसला होउन तिथून निघालो. माझे कशातच लक्ष लागत नव्हते. संध्याकाळी मी परत मित्रांकडे गेलो. पण तिथेही माझे मन रमेना. रम्याने मला विचारले, काय झालय रे तुला. मी त्याला सर्व परिस्थिति सांगितली. तर तो म्हणाला, अरे सोड रे, ती तरी कुठे साजुक आहे. ती नाही का सुरेशदादाला चढवून घेत. काय? मी जवळ जवळ किंचाळलोच. तो म्हणाला खरेच बोलतोय मी , हवे तर संजाला विचार. संजाने पण मान डोलावली. मला खुप राग आला होता. मी तिथून तड़क घरी आलो. शोभाताईबद्दल कुणी असे काही बोलले तर मला ते आवडत नव्हते. शोभाताई रोज आमच्या घरी यायची पण माझ्याशी ती बोलत नव्हती.

मग तो दिवस उजाडला. त्या दिवशी माझा रिझल्ट होता. माझे बाबा घरी नव्हते म्हणून मी व माझी आई शाळेत गेलो. मला ८९% पडले होते. आई खुप खुश झाली. मग आम्ही येताना वाटेत थांबुन पेढे घेतले आणि घराकडे निघालो. रस्त्यात माझा एक मित्र भेटला. मी आईला सांगुन त्याच्याजवळ थांबलो. आईने लवकर घरी येण्यासाठी बजावले. मी हो म्हणालो. थोडा वेळ त्याच्याबरोबर टाइमपास केला आणि घरी आलो. घरी आल्यावर आईने तोंडहातपाय धुवून देवा जवळ पेढा ठेवायला सांगितला. देवाजवळ पेढा ठेवल्यावर आईने एक पेढा मला भरविला व स्वत एक पेढा खाल्ला अन मला म्हणाली जा पहिला जावून शोभाताईला पेढे देऊन ये. मी गप्प झालो व तिथेच घुटमळत राहिलो. आई म्हणाली, अरे जा ना. मी म्हणालो, आई ती माझ्यावर चिडली आहे. ती माझ्याशी बोलत नाही. तर आई पटकन म्हणाली, अरे जा काही नाही होत. तूच काहीतरी वात्रटपना केला असशील. ती मोठी आहे ना तुझ्यापेक्षा. तिनेच तुझा अभ्यास घेतलाना. जा तिला पेढा पण दे आणि तिची माफ़ी पण माग. मला माहित आहे तिचा स्वभाव. ती कधी कुणावर चिडत नाही. आईने असे म्हनल्यावर मला खुप बरे वाटले. मी तड़क तिच्या घरी गेलो. दरवाजा बंद होता, म्हणून मी थोडासा लोटला तर तो उघडला मी मनाचा हिय्या करून आत गेलो. शोभाताई पलंगावर ओणवी होउन कसले तरी पुस्तक वाचत होती. मी हळूच तिला हाक मारली व म्हणालो शोभाताई, मला ८९% पडले. तिने पटकन ते पुस्तक उशीखाली ठेवले आणि माझ्याकडे पाहत उठली आणि मला मीठी मारली. व म्हणाली, ग्रेट मला माहित होते की तुला खुप चांगले मार्क्स मिळणार. असे म्हणून तिने माझी पप्पी घेतली व म्हणाली आधी पेढे दे. मी पुडा तिच्यासमोर धरला. तिने त्यातून एक पेढा काढून मला भरविला. पेढा खाताना मी तिला म्हणालो अग तू पण खा ना. तर ती म्हणाली मी तुला पेढा भरविला आता तू मला भरव. मी तिला पेढा भरवला.पेढा खातखात ती म्हणाली बंटी मला आज खुप आनंद झालाय, तू अगदी माझ्या अपेक्षेप्रमाने मार्क्स मिळविलेस. सांग तुला काय गिफ्ट हवय. मी म्हणालो काही पण तुला आवडेल ते दे. तिचा मूड बघून मी पटकन तिला म्हणालो, शोभाताई सॉरी, मी त्या दिवशी चुकलो, मी परत नाही असे करणार. तिने परत मला जवळ ओढले आणि माझ्या गालाची पप्पी घेत म्हणाली, मला माहित आहे तू असा नाहीस पण कुठल्याही मित्रांच्या नादाने तू काही चुकीचे करावे असे मला नाही वाटत. तिचे उरोज माझ्या हनुवटी आणि ग़ळ्याला स्पर्श करीत होते. तिचा तो उबदार स्पर्श मला मोहुन टाकित होता. मी ही तिला बिलगलो. बंटी, अरे असे छेडून मुली पटत नसतात. मी म्हणालो, माझा तस हेतु नव्हता. ती हसून म्हणाली अरे तुझ्या वयात मुलींबद्दल आकर्षण निर्माण होने हे काही नवीन नाही. मुली पटवन्याचे अनेक मार्ग आहेत. मी तुला शिकवल मुलींना कसे पटवायचे ते. आणि मला विचारले तुला कशा मुली आवडतात? मी म्हणालो की स्वभावाने छान आणि दिसायला सुन्दर. तिने थोडा विचार केला आणि म्हणाली सुन्दर म्हणजे कुनासारखी? मी म्हणालो तुझ्यासारखी खुप सुन्दर नसेल तरी चालेल. तिने परत मला मीठी मारली अणि विचारले मी एवढी सुन्दर आहे का? मी म्हणालो हो प्रश्नच नाही. ती म्हणाली तू माझ्यात काय पाहिले की मी तुला सुन्दर दिसते. मी म्हणालो तुझा गोरा रंग.ती म्हणाली बस गोऱ्या रंगामुळे मी तुला सुन्दर दिसते. मी म्हणालो नाही ग तुझे लांबसड़क काळेभोर रेशमासारखे केस, तुझे टपोरे डोळे, तुझे लाल लाल कान, तुझे गुलाबाच्या पाकळयासारखे ओठ. ती लड़ीवाळपणे मला म्हणाली सांग ना आणखी काय आवडते? तुझा गोंड गळा. ती म्हणाली पुढे बोल ना. आता माझा बाबुराव उठू लागला होता. मी तुझ्या छातीवरचे ते दोन मोठे गोळे म्हणता म्हणता माझे शब्द गिळून म्हणालो शोभाताई तू खुप सुन्दर आहेस. तिने परत माझ्या गालाची पप्पी घेतली. मी घाबरत तिला विचारले शोभाताई मी पण तुझी पप्पी घेऊ का? काही न म्हणता तिने डोळे मिटून घेतले. मग मी धीर एकवटून तिच्या गालाच्या जवळ माझे ओठ नेताना पाहिले तिचे ओठ थरथरत होते. तिच्या सर्वांगावर शहारे आले होते. ते पाहून मी तिच्या ओठांवर माझे ओठ ठेवले. ती काहीच म्हणाली नाही. आता मात्र माझा बांध तुटू लागला. मग मी पहिल्यांदा तिला खुप आवळले आणि तिच्यावर माझ्या मुक्यांचा वर्षाव करू लागलो. ती पण मला प्रतिसाद देत होती. माझे हाथ तिच्या मानेवर गेले होते. मग मी तिच्या तोंडात तोंड घालून तिचा मुका घेत होतो. आम्हाला दोघानाही सर्व जगाचा विसर पडला होता. तिचे मुलायम हाथ एव्हाना माझ्या शर्टमध्ये घुसले होते. ती हळूवारपणे तिचा मुलायम हात माझ्या छातीवर फिरवित होती. मग मी पण मुका घेत घेत माझा एक हात हळूच तिच्या छातीवर आणला आणि तिच्या एका उरोजाला दाबले. ती हळूच सित्कारली. मी तिच्या पोलक्यावरुनच तिचे गोळे कुस्करत होतो. ती खुप गरम झाली होती. तिने माझ्या शर्टची बटने काढ़ायला सुरवात केली.तिचे कान लालबुंद झाले होते. मी हळूच तिच्या कानाचा चावा घेतला. तशी ती पुन्हा सित्कारली. तिने माझा शर्ट काढला. माझ्या प्यांटीतुन माझ्या लवडयाचा उभार स्पष्ट दिसत होता. ती वरुनच माझ्या लवडयाला कूरवाळू लागली. कुरवाळत असताना तिने मला हलकेच ढकलत पलंगाकडे सरकावले. मी पलंगावर पडलो आणि ती माझ्या अंगावर पडली. मी परत तिचा मुका घेतला व तिच्या पोलक्याची बटने काढू लागलो. तिची सर्व बटने मी पटापट काढली व तिचा पोलका बाजूला केला. तिने सफ़ेद ब्रा परिधान केली होती. तिचे ते सुन्दर गोरेपान शरीर बघून मी वेडा झालो. मी तिचे दोन्ही स्तन तसेच कूरवाळू लागलो. मग मी तिला माझ्या जवळ ओढले व तिची ब्रा काढू लागलो पण मला काही जमेना. मग मी तिला ब्रा काढायला सांगितली. ती उठली आणि माझ्याकडे पाहून हसली. मला कळेना ती का हसली, पण लगेच मला उमगले की तिच्या ब्रा चे हुक पुढेच होते. तिने हुक काढताच तिची दोन्ही कबूतरे मोकळी झाली. केवढे मोठे स्तन होते तिचे. त्याच्या अग्रभागी गुलाबी रंगाची तिची कड़क बोंडे त्या गोऱ्या स्तनांचा आकर्षकपणा वाढवित होती. तिच्या स्तनांवर हिरव्या रंगाच्या नसा फुगून स्तनान्मध्ये ताठरपना आला होता. मग मी हळूच तिचा एक स्तन तोंडात घेतला आणि त्याला चोखू लागलो. तशी शोभाताई खुपच वेडीपीशी झाली. मग तिने माझी चेन काढून आत हात घातला. माझा लवडा ती दाबू लागली. माझ्या मस्तकातुन एक जोराची कळ निघाली. आज पहिल्यांदाच कोणीतरी माझ्या लवड्याला हात लावला होता. मला खुप बरे वाटत होते. तिने माझ्या प्यांट चे बटन काढले व माजी प्यांट ती हळूहळू काढू लागली. माझी जींस असल्याने ती खाली सरकवताना माझी अंडरविअरपण थोड़ी खाली सरकली आणि माझा लंड त्यातून थोडा बाहेर आला. शोभाताई ने हे पाहताच माझ्या अंडरविअरमध्ये हात घालून खाली सरकवली व माझा ताठलेला लवडा हातात घेउन त्याच्याशी खेळू लागली. मला असे वाटु लागले की आता माझ्या लवडयातुन काहीतरी बाहेर पडणार मी तिला लगेच थाम्बवले. तिने विचारले काय झाले. मी म्हणालो मला असे वाटतय कि आता माझा चिक बाहेर पडतोय. ती म्हणाली," मग तू आता कर ना." मी म्हणालो," ठीक आहे." मग ती पलंगावर आडवी झाली. मी तिच्या परकराची नाडी खेचली. मी तिचा परकर खाली ओढू लागलो. परकर खाली खेचताना मला तिची बेम्बी दिसली. तिची बेम्बी खुपच सुन्दर होती असे वाटत होते की त्याची पप्पी घ्यावी पण आता मी कंट्रोल करू शकत नव्हतो. तिचा परकर खाली खेचताच तिच्या गोऱ्या गोऱ्या मांड्या वरची तिची निळ्या रंगाची फुलांची चड्डी दिसू लागली. तिचे शरीर म्हणजे संगमरवरच वाटत होते. आता माझ्या सहनशक्तीचा अंत झाला होता. मी पटकन तिची चड्डी खाली ओढली आणि मला तिची पुच्ची दिसू लागली. काय सुन्दर भूरी पुच्ची होती. तिची काळीभोर आणि मुलायम झाटे बघून मला कधी एकदा माझा लंड तिच्या पुच्चित घालतो असे झाले होते.

The End

Kakuchi Gulabi Chaddi

Namaskar mitranno, mi nakkich asha karto ki hi story tumhala nakki awadel. Hi story ek khari ghatna aahe ji 2 varshanpurvi majhya jivnat ghadli aahe. Tevha mi 20 varshancha hoto. Mi ek middle class family madhun aahe. Hi ghatna ghadli tevha aamhi eka middle class apartment madhe rahat hoto.

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Karan first tym mi ticha cleavage baghat hoto. Ani mitranno tumhala mahitach ahe jyancha navane tumhi lund halavta tyancha asa scene samor disla tar kay halat hote ti. Mala aksharsh mi swapnat aslyasarkhe watat hote.. Tiche ball khup mothe hote. Tichi figure andaze 36-28-34 asel. Ti jevha jevha khali wakat hoti tasa majha shwas thambat hota. Majhya aat madhe first tym mala garmi janvat hoti. Tiche safed color cha bra ghatla hota. Kapde sukvun jhalyanantar ti khali geli…

Nantar mi ghari javun tichya navane 3 vela halavale. Waah kay drushya hote te. Tyanantar ek divas asach mi ghari pcvar ekta baslo hoto. Tevha darawarchi bell vajli. Mi jaun darwaja ughadla tar dhakkach basla… Ti kaku samor darvajat ubhi hoti. Mi tyanna kahi bolaychya aadhich ti mala mhanali ki “rajesh, tujhyakade ek kam ahe.” mi tyanna gharat bolavale.. Tyanni tight salwar kurta ghatla hota.. Salwar chi fitting mule tyancha mandya disun yet hotya. Mi tyanna bollo, “bola kaku kay kaam ahe”. Tevha ti mhanali ki “aamche he bolat hote ki tula computer che changle knowledge ahe”. Mi bollo, “ho kaku, mag?” ti mhanali ki “mala tally shikayche aahe, karan ata mi jobsathi try karnar ahe mhanun.”

Kakuche bcom jhale hote pan tyanni tally cha class kela navta. Mala tally che knowledge hote. Mala tar majhe swapn purn hotana disu lagle. Mi sandhicha fayda ghet mhanalo ki “kaku mi shikven tumhala pan te eka divsat shikta yenar nahi tumhala 2-3 divas majhyakade yawe lagel” kaku khush jhali ti mhanali “ho majhi kahi harkat nahi tase pan aamche he gelyawar mi ghari ektich aste. Mag mi yein. Mag kadhi yeu mi?” mi mhanalo “udyapasun ya tumhi” (karan aaj majhe 2-3 vela halvun jhale hote). Ti khush houn mhanali “thik ahe udya dupari yeil mi, thanks bye” kakula bye kele. Majha kharach majhya luck var vishwas basat navta. Mi ata kaku alyawar kase kay kay karayche yachi planning karu laglo. Pan tila raag ala ani tine konala sangitle tar yachi pan bhiti watat hoti. Tari mi vichar kela baghu kay hoeel te.

Dusrya divshi dupari mi ready ch baslo hoto kakuchi waat baghat. 1 vajta bell vajli mi darwaja ughadla. Kaku aaj suddha mast salwar kurta ghalun ali hoti. Mi tyanna welcum kele. Ani darwaja lawla. Mag gharatlya computer samor 2 chair thevlya ani aamhi doghe baslo. Mi tshirt ani 3/4th ghatli hoti. Ti majhya shejarich baslo hoti. Tila mi shikavayla suruwat keli. Shikavtana madhech majha hat tichya boobs na touch hot hota. Pan ti evdhe react karat navti. Kakune white color cha salwar kurta ghatla hota. Ani tichi salwar tight hoti mag mala tichi gulabi chaddi clear disat hoti. Ani chaddichi line suddha.Majha lavda halu halu garam hot hota.

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Tichi salwar khali padli. Ti ata fakt tichya gulabi chaddivar hoti. Mi kissing karta karta tichya chaddi madhe magun hat ghatla. Tichya bochyachya fatimadhe hat ghalun tichya bhokamadhe finger aat baher karu laglo. Ti mhanali ” rajesh khara mal tar pudhe ahe tu mage kay hat ghaltos. Mi mhanalo” kaku khari maja ithech aste he bhok kadhi loose hot nahi. Mag ti hasli. Mi tichya bochyachya bhokat majhe bot ghalu laglo.

Ti javal javal kinchallich. Mhanali “are jara halu ghal, mala savay nahi tikadchi. Mag mi bot aat baher karu laglo. Tichi chaddhi kadhli. Tine suddha mala purn nagve kele. Majha baburao pahun tiche dolech visfarle. Ti mhanali” rajesh khup mothe ahe ki re tujha, tujhya girlfrnd la maja yet asel”mi mhanalo ” kaku ajun tasa yog ala nahi majhya jivnat.” ti: ” are waa mhanje udghatan majhya hatunach ahe tujhe vatate, nashibvan ahe mi” mi: ” ho, ata ha tumchach gulaam ahe”

Tine majha lavda halu halu tondat ghetla va aat baer karu lagli. Tila khup maja yet hoti ani mala suddha. Majhe swapn khare jhale hote. Mi khup khush hoto. Nantar tila bed var jhopavale ani tichya pucchi madhe halu halu lund aat baher karu laglo. Ti ordat hoti aha aha raju jara halu re. Itkya mothya hatyarachi savay nahi re mala. Mi mhanalo” mag dukhtay tar band karu ka kaku. Ti: “are nahi re, ya dukhnyatach khari maja aste aamhala, ata mi sarvasvi tujhi ahe tujhi jashi marzi asel tase kar. Mag aamhi javal javal ardha tas jhawa jhawi karat hoto.

Thodya velane aamhi doghe gaar padlo. Mag aamhi ekmekanna nagde bilgun bed var padun rahilo ani kissing karat rahilo. Asach 2-3 mahine aamcha khel chalu rahila. Nantar mi dusrikade shift jhalo. Tithe mala dusri kaku bhetli, ti story sudha kahi divsa nantar upload karel mi.

Sunday, June 19, 2016

ताई ची पुच्ची

आझे नाव वश्या (प्रेमाने मल सर्व मला वश्या म्हणतात नावात काय आहे म्हणा आपल्या लवड्यला पुच्ची मिळली म्हन्जे झाले). ंआझे बाबाम ची नाशिक लाच पोस्टिम्ग झाली होती. आमच्या बम्गल्याचे काम पुर्ण व्हयला आजुन ४-५ महिने वेळ होत म्हणुन बाबानिम
बम्गल्याचे साइट पासुन जवळच एका चाळीत घर घेतले होते कारण बाम्धकामा वर ल देता येणार होते. चाळीत ले घर तस्से होते छोटेच पण ४-५ महिन्याम साठी आम्म्ही सर्वाम्नी अड्ज्स्ट करायचे ठरवले होते. १-२ दिवसाम्नी कळले कि शेजारी शेवाळे राहतात. घरात मी ,आई ताई आणि बाबा अस्से चार माम्णस.
नाशिक ला येउन तसे १ महिना झाला होता. बाबाम नि उन्हाळ्याच्या सुट्तिच नाशिक ला शिट केले होते. शेजाई शेवाळे काका , काकु , ंईना , अलका आणि तुषार ३ वर्षाचा मुलगा. काकु असतील ४० वर्षाच्या अलका ंओठि मुलगी २१ , मीना १९. सुरेखा काकु कडे बगुन असे वाटणार नाहि कि त्या ४० चा आःएत असे.
दुसरे शेजारी होते काळे. पन्नशीत पोःअच्लेले जोड्पे होते. त्याम्चे मुलाचे आणी मुलिचे लग्न झालेले होते अनि ते पुण्याला अनि मुम्बईला स्थायीक झाले होते. शेजाई चाम्गले असल्या मुळे नवीन असे वाटले नाही. थोड्यच दिवसात सर्वाशि घरोब्याचे सम्न्बध झाले होते.
ंआझा स्वभाव थोडास लजरा बुजारा असल्यामुळे सहसा लगेच ंइक्स होत नसे. त्यामुळे माझी तसे कोणाशी ओळख झाली नाही. पण माझी ताई लता २३ अर्षाची (एम्म, टेक ला) तशी खुप बड-बडी स्वभावची तिने थोद्यच दिवसत सर्वान्शी ओळखी पाळखी केल्या होत्या. ताईचा न्येचर मुळे तिची अलका अणि ंईना शी खुपच गट्टी झाली होती.
ंए महिना होता ऊन तसे खुपच होते. दहाम्वीची पेपर्स झाले होते. सुट्ति सर्वच जे करतात तेच म्हजे हे चालले होते. कर्रं खेळणे, कथा कादम्बई वाचणे , फ़िरयला जाणे वैगरे वैगरे. ंअला एक गोष्ट लआत आली होती ती अशी की चाळीतले मुले लता ताई शी लगट करत बोलायचे ( थोड्क्यात काय तर ताई चाळीत एक नवा माल आला आहे त्यामुळे खुश होते).
ंई तस्सा मुठ्या मरायला लागलो होतो ते ताई कडे बघुन च. लता ताई दिसायला खुप सुन्दर ५’ १०" उन्ची. ंअध्म्म बाम्धा. गुलाबी होट. गोबरे गाल, काळे भोर मोठे मोठे ढोळे. टप्पोरे स्तन. भरधार माम्डया.
थोड्क्यात ३६-२४-३६ ची फ़िगर.
ःइ २-३ अर्षा पुर्वीची गोष्ट मी अस्साच एक गणिताची अड्चण घेउन ताई कडे गेलो होतो. दुपारची वेळ होती. आई बाजारात गेली होती. घरी मी आणि लता ताईच होतो. ताई तिच्या रुम्म मधे होती. ंअला वाट्ले ती नेहंई प्रमाणे स्टडी करत असेल पण . . . . ंई बूक घेउन सरळ तिच्या रूं मधे गेलो अन्नि दारातच थबकलो.
ंआझ्या आवडत्या ताई चा गाउन तीच्या मान्ड्यप्र्र्यन्त सरकलेला आणि ताई जोर जोरात आपल्या मान्ड्या घासते आःए, मी तस्साच थोडीशी हिम्मत करुन आत गेलो. ताई च्या त्या गोर्रा मान्द्य बगुन मला माझ्या चड्डीत वळवळ जाणवला लागली.
ताई चा गाउन बरच वर सरकल्या मुळे मला तीची सफेद पन्टी अगदी नीट दिसत होती. तिच्या त्या केळीच्या बुध्या सारक्या भरलेल्या गोया माड्या आणी तिचे लाली चड्लेले कुल्ले बगुन माझा लवडा चाम्गलाच कडक झाला होता. तीचि पन्टी तिच्य्या गाम्डीच्या अटीत अडकलेली होती.
ंआझे ल जवळ्च पडलेल्या एका पुस्तकावर पडले. ंअला लआत यायला वेळ लागला नाही , ताई तीच्या माड्द्या का घासते आहे. ंई हे सर्व बराच वेळ बाजुला उभा राहुन बघत होतो.
५-१० मिम्निटात ताई झड्ली असेल (झड्ली , गळले , वैगरे शब्द मला नम्तर कळले). त्याम्नतर ताई ने तिचा गाउन खाली केला आणि तशीच पडुन राहिली. ंअग मी पण तिला डिस्टर्ब्र केला नाही. आणी बाथरूम मधे जाउन पहिल्यादा माझा लन्ड हलवायला सुरुवात केली.
आश्या प्रकारे मी मुठ्या मारायला शिकलो. आता प्र्यन्त तुमच्या लआत आलेच असेलच की मला माझी ताई किती आवडते ते. असे बरेच दिवस ताई च्या त्या भरलेल्या मान्द्य तिचे ते मोठे मोठे कुल्ले बघुन लवडा रोज हल्वयचो.
अधुन मधुन अलका आमच्या कडे येउ लागली. अर्थात ती ताई ला भेटायला यायची. कधी कधी माझाशी थोडावेळ बोलयची. एक दिवस सकाळी सकाळी धुळ्या वरुन काकाचे पत्र आले होते, जमिनीचे अणि काही घरचे काही तरी कामम होते, कामम तस्से सीरिअस असल्यामुळे आई बाबानाम गावी जावे लागणार होते. आई बाबानाम मी बस-स्टन्ड वर सोडुन घरी आलो. ताई तिचा ऎग्जास ची तयारी करत होती.
ंअला तस्से काही काम नव्हते म्हणुन मी मागे वाड्यत खाट टाकुन झोपलो होतो. ंआझा डोळा लागला असेल नसेल तोच सु.. सु.. सु.. च्या आवाजा मुळे माझी झोप चालवळी गेली. ंअला वाटले ताई बाथ-रूम मध्ये गेली असेल.
पण नम्तर नीट ल देउन आइकल्या वर लआत आले की आवाज शेजारुन येतो आहे. (आमंही जेथे राहत होतो त्या चाळीत ३ खोल्या (रूमस) होत्या, पुढे एक छोट्टासा रूम मधे एक बेड-रूम आणी नम्तर किचेन, शेवटी एक १० बाय १० ची. ःई मोकळी पण सर्व बाजुम्नी बम्धिस्त होती.( तिला वाडा म्हनायचे)
एक भिम्त दोन घरा मध्ये कमोन. किचन मधुन बाहेर आल्यावर हा वाडा आणि डाव्या बाजुला एक बाथ-रूम. दोम्न्ही घराम्ची बाथ-रूम चे दार समोरच्या कोमन भिम्ती कडे होते. ंअधली कोमन भीम्त तशी असेल ६-७ ऊट. (होप हा सेट-प लआत आला असेल.) सु.. सु.. सु.. च्या आवाजा मुळे मी उठुन भिम्तीला कान देउन आयकु लागलो. ंई जर हिम्मत करुन खाट भिम्ती जवळ ओड्नन आणली आणि हळुच वर चडुन ढुम्कुन बघू लागलो.
ंआझ्या आयुष्यातली पहिली पुच्ची मला बगायला मिळाली. शेवाळे काकु त्याम्ची साडी वर करुन मुतायला बसल्या होत्या, पण भिम्ती कडे तोम्ड करुन (मी बराच कनयुज झालो, काकु अश्या भिम्ती कडे तोम्ड करुन बाथ-रूम मध्ये का बसल्या. टोयलेट मध्ये का गेल्या नाःईत).
ंई भीतीने आनी अनपेइत अश्या घट्नेने अवाक होऊन त्याम्ची ती केसाळ पुच्चि मन लाउन बगत होतो. काकुम्नी साडी अगदीच वर उच्लुन धरल्यामुळे मला त्याम्च्या त्या चोकलेट कलर च्या मान्द्य.
त्या टम्च भरलेल्या मान्द्य मधे ही केसाळ पुच्चि आणि तिच्या मधुन सु सु सु करत निघनारे ते पाणी बघुन माझा लवडा चाम्गलाच तापला होत (मला हे भानच उरले नाही की लता ताई पण घरात आहे त्याचे.) तितक्यात ताई आली आणि माझ्यावर जोरात ओरडली तो आवाज आयेकुन काकुम्नी भिम्ती कडे बगितले.
तो पर्यन्त त्या साडी खाली करुन उभ्या झालेल्या होत्या, त्याम्ची माझ्याशी नजरा नजर झाली. तसा मी ओशाळुन खाली बघायला लागलो, तो पर्यत लम्ड बसला होता. पण काकुम्नी फकत एक मम्द स्मित हास्से करुन त्या घरात गेल्या. एकडे ताई मला जोरजोरत बोलत रागवत होती कदाचीत ताई च्या लआत आले होते मी काय करत होतो ते.
ह्या सर्व प्रकारने मी पुरता घाबरलो होतो, आता ताई बाबानाम साम्गणार आणि बाप चाम्गली धुलाई करणार. मला काही सुचत नवते. ंई ताई कडे गेलो ताई मधल्या रूम (आई बाबा चे बेड-रूम , चाळीत आल्यापासुन, पहिल्या खोलीत मी आणि ताई एकाच रूम मध्ये झोपत होतो) मध्ये होती.
ंई ताईला आवाज दिला पण ताई काही माझ्याशी बोलयला तयार नव्हती. ंई २-३ वेळा आवाज दिला आणि बम्गल्याच्या साईट वर निघुन गेलो. आज पहील्यादा ताई माझ्याशी बोलत नाही याचा मला खुप वाईट वाटले. बराच वेळ मी बाहेर टायपास केला आणि सम्ध्याकाळी घरी परत आलो.
ताई ने स्वयम्पाक करुन ठेवला होता. ंई घरी आल्यावर बगीतले तर ताई बेड वर पुस्तक वाचत बसली होती. ंअला खुप भुक लागली होती. ंई ताईला पुन्हा आवाज दिला,
"ताई चल ऊठ मल भुक लागली आहे." ंई
"स्वयम्पाक नाही केला बाहेरुन जेवण करुन ये." ताई
ंअला आता अडायलाच यायला लागले. ंई सरळ पळत जाउन ताई च्या कुशीत जाउन जोर जोरात रडायला लागलो( ताई माझ्या पेक्शा ७-८ वर्षा मोठी होती त्या मुळे मला ती नेहमी वडीलधा-यी व्यक्ती होती.)
ताई ला आता माझी दया यायला लागली होती. ताई म्हनाली आज जे केले ते परत करणार नसशील तर तुला आज माफ़ करते. ंई स्वारी, स्वारी आता नाही करणार म्हणत ताई च्या माम्डीवर माझे तोम्ड खुपसत होतो. ताई माझ्या पाठीवर मायेने हात फिरवत होती.
ःया सर्व प्रकारात मला एक लआत आलेच नाही की मी ताई च्या माम्डीवर माझे तोम्ड ठेवले आहे त्याचे. ंई माझा गुन्हा विसरुन ताई च्या माम्डीवर वर माझे नाक रगडु लगलो, आणि एका ताईला अजुन घट्ट मीठी मारली. आणी तिला माझा सम्शय येऊ नये म्हनुन परत हसमुसुन रडु लगलो. ंआझा ह्या अश्या हालचालीच ताई वार परिणाम झाला असणार ताई मधेच हुम करुन उठली आणि मला दुर ढकलायला लागली.
ंई ताईच्या ढकलण्या कडे ल न देता अजुनच माझे हात ताईच्या कमरे भोवती घट्ट केले. ताई ने पण मग माझ्या केसाम मधुन हाथ फ़िरवु लागली. मला म्हनाली अशी चुक होते जाऊदे आत्ता अडु नकोस. माझे सर्व ल आता ताईच्य माम्डीवर होते.
ताई नेहमी उम्ची परफ़ुम्म लावते त्याचा सुगम्न्ध आता नाकात दरवळाया लागला होता. ताईच्या गाउन मधुन एक छान सुगम्न्ध येऊ लागला. ताईने माम्ड्या जवळ घेतल्या मुळे मध्ये काही जागा नसल्या मुळे मला तोम्ड आत मध्ये गुसवता येत नव्हते.
मी माझा हात कमरेवरुन कडुन ताईच्या माम्डीवर ठेवला तसे तिने शरीराला एक झटका दिला , जशी तिच्या अम्गातुन वीज़ेच्या लहरी गेल्या असतील. मी मुसमुसतच ताईच्या माम्डी वर हात फिरवत फिरवत पडून राहिलो. आता माझी हिम्मत थोडीशी वाढली होती आणि ताई पण पेटली होती. ंई बराच वेळ तस्साच पडुन होतो.
ती पण काही बोलत नाही हे बगुन मी माझा हात तिच्या पुच्चीच्या दिशेने आत नेला. लता ताई काहि न बोलता तशीच बसुन माझ्या पाठीवर हात फिरऊ लगली. माझा हात आता तिच्या पुच्चिच्या जवळ पोहचला होता. तिच्या कडुन काही प्रतिसाद नाही हे बघुन मी माझा हात तिच्या गाऊन वरुन तिच्या पुच्चि वर ठेवला.
ताई ह्या अचानक हालचालीमुळे ठोडीशी बावरली. ंई पण तिच्या प्रतिसादा ची वाट बघु लागलो. ताई काहीच बोलत नाही हे बघुन माझी भीड चेपली आणि माझा हात तिच्या पुच्चिवर फिरवु लागलो. ताई ने आता तिचे पाय थोडेशे बाजुला केले आणि थोडीशी पाठीवर कलम्ड्ली.
ंई पण मग उठुन ताई च्या पायाजवळ बसलो. ताई चे डोळे मिट्लेले होते.
ंई पण त्याला मुक सम्मम्ती समजुन तीच्या गाऊन ला हात घातला. आणि हळुहळु वर सरकवु लागलो. ंई तर अगदी स्वप्नवत होवुन पुड्चे काम सुरु केले. ंअला आजुन विश्वास होत नव्हता की मी सर्व करतो आहे त्याचे
ंई विचार केला की ताई ला एकदा विचारावे पण , तो विचार तसाच सोडुन मी तीचा गाउन वर सरकवायला लगलो. आत्ता तीची सफेद पम्न्टी दिसायला लगली होती. ंई थोडासा जवळ सरकुन तिच्या माम्डी वर हात फिरवु लागलो. ताई पण आता सुस्कार टाकायला लागली होती.
ंई काही अण तिच्या त्या मुलायां कपड्या वरुन तिच्या पुच्ची चा अनुभव घेत होतो. बोटाच्या चिंअटीत तीच्या पुच्ची चे उभार दाबत होतो. आता मला तिच्या पुच्चीचा ओलावा जाणवात होता. ंई तिची पण्न्टी काडायचा प्रयत्न करु लागलो. ताई ने पण तिचे कम्बर उचलुन पण्न्टी काडायला मदत केली.
तीच्या पुच्चीवर विरळ असे केस होते, पुच्ची चे ते उभार फ़ुगलेले होते. ंई ते सर्व कसे अगदी निरखुन बगत होतो. चद्दीत बाबुराव चाम्गलाच कडक झाला होता. तीच्या त्या आत्तापर्य्नत न झवलेल्या पुच्चीवर मी कीस करु लागलो. तीच्या बेम्बीपासुन तिला चाटायला सुरुवात केली. हळुहळु तीच्या पुच्ची कडे सरकु लागली.
ताई पण चागलीच पेटली होती. जसा मी तीच्या पुच्चीवर माझी जीभ नेली ती जोरात स..स ह.... करु लागली. मी पण मग आधाश्यासारखा तीची पुच्ची चाटु लागलो. दोन बोटाम्नी तीच्या पुच्ची चे होट इलग करुन पुच्ची चत्तु लगलो.
शक्क होयील तेवढी जीभ आत बाहेर करु लागलो. पुच्ची आता पाझरु लागली होती. काहि अणातच ताई नी पाय जवळ करुन आचके देत गळु लागली. ंअला त्या पाण्याची चव अमॄताहुन गोड लागत होती. ३-४ ंइनीट ताई झडत होती. ताई ने आतापर्यन्त डोळे बम्धच ठेवले होते.
तीचा बाहर ओसरेपर्यम्त मी तीच्या पुच्चीला चाटत होतो. ंई वर सरकुन ताईच्या चेहर-याला माझ्या हातात घेउन तीला कीस करु लागलो. तीचे ते गुलाबी होठ मला वेड लावु लागले. मी तीला माझ्या कुशीत ओड्त तीची तोडाम्त माझी जीभ टाकु लागलो. ताई पण मला साथ द्यायला सुरुवात केली.
आता तिने पहील्याम्दा तीचे डोळे उघडले होते. तीच्या डोळ्यात ते माझासाठीचे प्रें आणि शारीरीक सुखाची झलक बगुन मी तीला जोर जोरत किस करु लागलो आणि तीच्या गाउन चे बटण काढुन तीचा गाउन कदुन टाकला. आता तीच्या शरीरावर फक्त तीची ब्रा होती. एका झट्क्यात मी ब्रा कडुन टाकली.
मी आता माझे ल तीच्या भरलेल्या स्तनाम्कडे केद्रित केले. तीचे ते भरलेले स्तन, त्याच्याम्वर ते २ इन्चाचे ब्राउन कलर चे निप्पल्स छान उठुन दिसत होते. थोडावेळ तीचे स्तन दबात चोखत होतो. ताई आता परत सुस्कार टाकु लागली.
फ़क्त माझी अड्र्रवेअर सोडुन ंई पण माझे कपडे कडुन टाकले. ताई आता बेड वरुन उठ्ली, अणि मला ईश्यार-यानेच बेड वर झोपायला साम्गितले. ंई बेड वर झोपुन पुढे काय होते ते बघु लागलो. ताई ने माझ्या अड्र्रवेअर वरुन हात फिरवयला सुरुवात केली. तसे करताम्ना तीच्या डोळ्यावरचे मादक भाव मी बघत होतो.
तिने एका झट्क्यात माझी पन्त कडुन टाकली. अणि माझ्या लम्डाकडे असे बघु लगली जसे मुल नवीन खेळणी मिळाल्यावर बघतो. ंआझ्या टाईट लम्डवर हात फिरऊ लागली अणि माझ्याकडे प्र्श्नाथ्र्क नजेरेने बघु लागली. ंई तिला हातानेच मुट्ठ मारतात तसा इशारा करुन साम्गितले. तीने साम्गितल्या प्रमाणे लम्ड हलवू लागली.
ंई बराच बेळ तापलो अस्ल्यामुळे आणि पहील्यादाच दुसर-या कुणाचा हात लम्डावर फिरत होता म्हणुन ताई ताई करत १-२ झटके देत गळु लागलो. ऎक दोन थेम्ब ताई च्या चेह-यावर पडले. ताई ला हे सर्व नवीन होते त्यामुळे ती थोडी बावरली, मी स्वारी म्हणत ते तीच्या गालावरुन माझ्या अड्र्रवेअर पुसले.
आम्म्ही तसेच बराच वेळ न बोलता बेड वर पडुन होतो. काय बोलावे हे तीला पण सुचत नवःअते. आता मलापण गिल्टी इल होऊ लागले होते. थोडयावेळ्यानम्तर ताई नेच शातम्ता भम्ग करत बोलली. "असम्त"
ंई "हु"
"कायरे असा गप्प का?" "असे घडते कधी कधी जाउदे विचार नको करुस चल जेवण करुन घे, तुला भूक लागली ना" ताई
मी हो म्हणत परत ताईच्या कुशीत शीरुन तीला बिलगलो. ःए कोणाजवळ बोलु नकोस आज जे घडले ते. माझापण ताबा नाही राहीला माझ्या मनावर" आता मलापण जरा धीर आला होता. "ताई तु मला खुप आवडतेस, मला माफ़ कर माझ्या मुळे तुला हे सर्व करायला लागले."
"अरे असे काय करतो मला पण तु खुप आवड्तोस पण आत्ता जे केले ते वासनेच्या आहरी जाउन्च जाउदे दुसरे कुनाशी काही करु नये म्हनुन मी पण तुला साथ दिली."
असे आमचा बराच वेळ ताई ने मला समजावत आणि बोलण्यात गेला.